
पुस्तक का नाम - एशिया जाग उठा ( काव्य संग्रह )
अक्सर कवि अपने समय और काल की घटनाओं से प्रभावित होते हैं और अपनी रचनाओं में किस ना किसी रूप में उन घटनाओं को दर्ज़ करते हैं। इसके ज़रिये हमें उस काल और समय की आंशिक जानकारी मिलती है। उर्दू के प्रसिद्ध शाइर जनाब सरदार जाफ़री द्वारा रचित काव्य " एशिया जाग उठा " एक ऐसी ही दुर्लभ पुस्तक है। पुस्तक में एशिया पर यूरोप और अमेरिका के खतरे को उजागर किया गया है और एशिया के पाँच हज़ार वर्ष पुराने इतिहास , संस्कृति और सभ्यता को काव्य रूप में ढालने की कोशिश है। शाइर अपनी भूमिका में लिखते हैं -
" साम्राज का फूहड़ और सड़ा हुआ शरीर यूरोप और अमेरिका में फैला हुआ है लेकिन वह अपनी एड़ियाँ एशिया की ख़ाक पर रगड़ रहा है "
आज के सन्दर्भ में यह पुस्तक पूर्ण रूप से सार्थक न होते हुए भी महत्त्वपूर्ण है। पुस्तक के आख़िरी अंश में शाइर दुनिया के नक़्शे को भूल मानवता को कुछ यूँ परिभाषित करता है -
"हमारे हाथों में हाथ दो सोवियत कम्युनिज्म की बहारों
हमारे हाथों में हाथ दो ए आवामी जम्हूरियत के हँसते हुए सितारों
हमारे हाथों में हाथ दो यूरोप और अमेरिका के जवांबख्त कामगारों
हम एक है एक हो गए है
सियाह , पीले , सफ़ेद , भूरे
हम एक फ़सलें बहार के फूल , एक सूरज की रौशनी हैं
हम एक दुनिया के मुख़्तलिफ़ तार , इक समुन्दर के दिल की मौजें
अलग - अलग फिर भी इक हैं , एक - एक धरती के रहने वाले
हम एक धरती के बसने वाले हैं , एक इंसानियत के क़ायल
न कोई पूरब है और न पच्छिम
ज़मीं सूरज का आइना लेकर नाचती है
हयात इंसां के जीत के गीत गा रही है। "
शाइर ने इस पुस्तक को कुछ यूँ समर्पित किया है " कृशनचंद्र की हसीन व जमील कहानियों के नाम जो एशिया की जंगे आज़ादी के ख़ूबसूरत हथियार हैं। "
लेखक - सरदार जाफ़री
प्रकाशक - प्रगति प्रकाशन , नई दिल्ली
प्रकाशन वर्ष - प्रथम संस्करण , 1951
कॉपीराइट - सरदार जाफ़री
पृष्ठ - 40
मूल्य - ( 1/ INR (एक रुपया केवल )
Binding - Paperback
Size - डिमाई 4 " x 6 "
ISBN - Not Mentioned
प्रस्तुति - इन्दुकांत आंगिरस
आज के रूस यूक्रेन युद्ध के परिप्रेक्ष्य में यह विचार प्रासंगिक हो उठे हैं, यद्यपि रूस को जिस आदर्श के रूप में कल्पित किया गया है, वह आदर्श अब नहीं रहा।
ReplyDelete