हज़ारों वर्षों से मनुष्य धर्म की हाथों कठपुतली बनता आया है। धर्म ने करोड़ों लोगों को प्रभावित किया है , इसी के कारण बहुत से युद्ध हुए हैं । धर्म ने मानव जाति का नाश किया है या उद्धार किया है , इसके बारे में अनेक लेखकों ने अपने अपने मत दिए है। इसी विषय पर आचार्य श्री चतुरसेन शास्त्री जी द्वारा रचित पुस्तक ' धर्म के नाम पर ' एक दुर्लभ और विचारणीय पुस्तक है। पुस्तक के कवर पेज पर ही एक सीढ़ी बनी हुई है जिसमे लिखा है धर्म के नाम पर क्या क्या होता रहा है। शायद कवर पेज की तस्वीर में इन्हें पढ़ने में असुविधा हो इसलिए उस सीढ़ी पर अंकित विषयों को प्रस्तुत कर रहा हूँ :
बेवकूफ़ी , छल , धूर्तता , ठगी , झूठ ,अनाचार ,पाखण्ड ,पाप ,व्यभिचार , अपराध और हत्या।
धर्म के नाम पर उपरोक्त सभी कुछ होता आया है और सिर्फ भारत ही नहीं अपितु विश्व के अनेक देशों में। लेकिन अब प्रश्न यह उठता है कि क्या धर्म ने हमारे साहित्य को भी प्रभावित किया है और अगर किया है तो किस हद तक। साहित्य का काम मनुष्यता को बचाए रखने का होता है और किस हद तक धर्म का काम भी यही होना चाहिए लेकिन ऐसा होता नहीं है। ' धर्म के नाम पर ' पुस्तक में लेखक ने उपरोक्त विषयों पर विस्तार से चर्चा की है। पिछले कुछ सालों में हमारे देश में भी धर्म के नाम पर बहुत कुछ अटपटा हुआ है। ऐसे में इस पुस्तक की महत्ता और भी बढ़ जाती है , संभव हो तो इस दुर्लभ किताब को ज़रूर पढ़ें।
पुस्तक का नाम - धर्म के नाम पर
लेखक - आचार्य श्री चतुरसेन शास्त्री
Copyright - ( Not mentioned in book )
Language - Hindi
प्रकाशक - हिन्दी साहित्य मंडल , देहली
प्रकाशन वर्ष - तृतीय संस्करण , आठवीं आवृति ,1949
पृष्ठ -152
मूल्य - INR 1/ ( एक रुपया केवल )
Binding - Paperback
Size - 4" x 6 "
ISBN - Not Mentioned
लेखक - आचार्य श्री चतुरसेन शास्त्री
जन्म - 26th August , 1891
निधन - 2nd February , 1960
NOTE : इस पुस्तक का प्रथम संस्करण सं 1934 में प्रकाशित हुआ था। लेखक के बारे में अधिक जानकारी के लिए उनका विकी पेज देखें।
प्रस्तुति - इन्दुकांत आंगिरस
अति उत्तम पुस्तक प्रतीत होती है। आचार्य चतुर्सेन एक प्रबुद्ध और सुलझे हुए लेखक हैं।
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