Saturday, February 12, 2022

पुस्तक परिचय - रवींद्र कविता कानन ( Rabindranath Tagore - POET of RIVER )

 


                                       पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी ' निराला ' की प्रथम गद्य रचना 

                         

                                                  Rabindranath Tagore - POET of RIVER 




              नोबल साहित्यिक पुरस्कार से सम्मानित विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर किसी परिचय के मोहताज नहीं।  " गीतांजलि " काव्य संग्रह के लिए इन्हें नोबल पुरस्कार से सं 1913 में नवाज़ा गया जिसका अँगरेज़ी अनुवाद  स्वयं कवि ने किया था।  बाद में इस पुस्तक का अनुवाद विश्व की अनेक भाषाओं में हुआ।पश्चिमी संसार रवीन्द्रनाथ टैगोर को नदी का कवि ( The Poet of River )  मानता है और यह सत्य भी है।   जैसा कि सर्वविदित है कि ' गीतांजलि ' बांग्ला भाषा में लिखी गयी थी , न सिर्फ़ गीतांजलि अपितु रवीन्द्रनाथ टैगोर का अधिकांश साहित्य बांग्ला भाषा में ही रचित हुआ। रवीन्द्रनाथ को उस युग में हिन्दी के पाठकों को समझाने का प्रथम प्रयास   सूर्यकान्त त्रिपाठी ' निराला ' द्वारा  ' रविंद्र  कविता कानन ' पुस्तक को रच कर किया गया।  इस पुस्तक कि महत्ता इसलिए भी अधिक हो जाती है क्योंकि निराला जी की  यह प्रथम गद्य रचना है। इस पुस्तक में  विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर  की संक्षिप्त जीवनी भी उपलब्ध है और परिशिष्ट में क्रमानुसार रवींद्र ग्रन्थ - सूची भी दी गयी है जोकि  महादेव साहा द्वारा बनाई गयी है और पुस्तक के प्रथम संस्करण में उपलब्ध नहीं थी। इस ग्रन्थ - सूची में  सं 1878 में कवि की कविताओं की पुस्तक - कवि काहिनी से लेकर 1937 में प्रकाशित अंतिम पुस्तक -खाप छाड़ा से ( हास्य रस की कविताएँ एवं कहानियाँ ) का ब्यौरा है। । ' निराला  ' जी ने इस पुस्तक में  रवीन्द्रनाथ टैगोर  के बांग्ला भाषा के पद्यों का हिन्दी सार भी प्रस्तुत किया है। बानगी के तौर पर मूल बांग्ला का एक पद्य और उसका सार देखें -


" आजि ए प्रभाते      सहसा  केरने

  पथहारा   रवि - कर 

आलय न पेय   पड़ेछे आसिये

आमार प्राणेर  पर 

बहु दिन परे   एकटी  किरण 

गुहाये दियेछे   देखा  

पड़ेछे आमार आंधार  सलिले

एकटी  कनक -रेखा। "


हिन्दी सार - ( आज इस प्रभात के समय , सूर्य की एक किरण एकाएक अपनी राह क्यों भूल गयी , यह मेरी समझ में नहीं आता।  वह कही  ठहरने  की जगह न पा, मेरे प्राणों पर आकर गिर रही हैं।  मेरे हृदय की कंदरा में बहुत दिनों के बाद किरण दिखायी दे रही है , हे - मेरी अन्धकार सलिल राशिपर सोने की एक रेखा खिंची हुई है।  )

( पृष्ठ - ३० -३१ )







पुस्तक का नाम - रवींद्र  कविता कानन 

                           

लेखक -  सूर्यकान्त त्रिपाठी ' निराला ' 

Copyright -   ( Not mentioned in book )

Language - Hindi 

प्रकाशक - हिन्दी प्रचारक पुस्तकालय , बनारस 

प्रकाशन वर्ष - संशोधित तथा परिवर्धित जन - संस्करण  ,1954

पृष्ठ - 176

मूल्य - 15.3 Anna  ( साढ़े पंद्रह आने  )

Binding -  Paperback

Size -  4" x 6 "

ISBN - Not Mentioned



रवीन्द्रनाथ टैगोर


जन्म -  7th May  , 1861 . Kolkota 

निधन -  7th August  ,1941 . Kolkota


सूर्यकांत त्रिपाठी  ' निराला ' 


जन्म - 21st February , 1896 . Midnapore

निधन -  15th October , 1961 . Pryagraj 



प्रस्तुति - इन्दुकांत आंगिरस 


NOTE : रवीन्द्रनाथ टैगोर एवं सूर्यकांत त्रिपाठी  ' निराला ' के बारे में   अधिक जानकारी के लिए उनका विकी पेज देखें। 


1 comment:

  1. एक महाकवि द्वारा दूसरे महाकवि के बारे में लिखना निःसंदेह उत्कृष्ट एवं पठनीय होगा।

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