गरिमा पाठक
( 23-7-1970 ---- 07-02-2022 )
भूल जाना मुझे धीरे धीरे
सब कुछ बदल जाऐगा धीरे धीरे
उगते सूरज को सभी नमन करेंगे ही
मैं तो ढलती रात हूँ
सुषुप्त मद्धम साँसें भी नहीं हैं मेरी
भूल जाना सब मुझे ....
- गरिमा पाठक
गरिमा पाठक आप सब से उन्हें भूल जाने अनुरोध कर रही हैं , पर क्या इतना आसान होता है किसी को भुलाना ?
हमारे समाज में अक्सर ऐसा होता है कि जब भी कोई विशिष्ट साहित्यकार / कलाकार की आत्मा इस संसार से विदा लेती है तो अख़बारों और मीडिया में उनके महाप्रस्थान और उनके काम की जानकारी विस्तार से दी जाती है लेकिन बहुत से गुमनाम साधारण साहित्यकार , कवि और कलाकार अक्सर गुमनामी में खो जाते हैं जिनकी जानकारी हमें न तो अख़बारों में मिलती है और न ही मीडिया में। ऐसी ही एक साहित्यकार गरिमा पाठक का कल ( 07-02-2022 ) को गोलोक गमन हो गया।
गरिमा जी मेरी पहली मुलाक़ात सितम्बर 2021 में बेंगलुरु में राही राज के निवास स्थान पर हुई। राही राज और गरिमा पाठक के सम्पादन में प्रकाशित साझा कविता संग्रह - ' उगता सूरज ' का विमोचन 5 सितम्बर' 2021 को बैंगलोर में हुआ और इसी दिन ' कलश कारवाँ फाउंडेशन 'की स्थापना की घोषणा हुई। गरिमा जी ,कलश कारवाँ फाउंडेशन की संस्थापक ट्रस्टी थी। गरिमा जी अत्यंत सहज , सरल , मिलनसार और मृदुभाषी थी।
इन्होने कविता , गीत , मुक्त छंद , लघुकथा आदि विधाओं में अपनी रचनाओं के ज़रिये समाज में व्याप्त कुरीतियों और विद्रूपताओं को बख़ूबी उजागर किया है, विशेषरूप से इनकी देश प्रेम की कविताएँ सराहनीय हैं। उनका सपना था कि कलश कारवाँ फाउंडेशन के तहत , भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के स्वतंत्रता सैनानी एवं शहीदों की याद में सेलुलर जेल , अंडमान निकोबार में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया जाये। उनके जीवन में तो उनका सपना पूर्ण नहीं हो सका लेकिन आशा करता हूँ कि ' कलश कारवाँ फाउंडेशन ' उनके इस सपने को ज़रूर पूरा करेगी।
साहित्य के प्रति उनका अतुल्य समर्पण कभी भुलाया नहीं जा सकता। वह अपने साहित्यिक मित्रों को भी उत्साहित करती रहती थी। आकाशवाणी से काव्य पाठ व अनेक साहित्यिक पत्र - पत्रिकाओं में उनकी रचनाएँ प्रकाशित हुई। 'साझा संकलन ' सप्त ऋषि ' एवं 'अभुदय काव्यमाला' में भी रचनाएँ प्रकाशित। ई - बुक के रूप में 'अमृत सुधा ' एवं ' रिश्ते के अनुभव '। उनके एकल काव्य संग्रह ' अनुभव सुधा ' का साहित्य जगत में भरपूर स्वागत हुआ। उनके और राही राज के सम्पादन में प्रकाशित साझा काव्य संग्रह ' उगता सूरज ' भी साहित्य जगत में काफ़ी चर्चित रहा। कविता के अलावा इन्हें चित्रकारी और हस्त - रेखाओं को पढ़ने का भी शौक़ था। सन 2000 से 2012 तक इन्होने चित्रकला शिक्षण संस्थान , बैतालिक रांची में चित्रकला शिक्षक के रूप में कार्य किया लेकिन कविता का दामन कभी नहीं छोड़ा। 26 दिसंबर 2022 को बैंगलोर में , अखिल भारतीय संस्कृति समन्वय समिति द्वारा आयोजित " कर्नाटक साहित्य उत्सव ' के दौरान गरिमा पाठक को पंडित सुरेश नीरव के कर कमलों से ' संस्कृति समन्वय सम्मान ' से सम्मानित किया गया। हाल ही में उन्हें अवध भारती संस्थान, लखनऊ द्वारा ' तुलसी अवधी सम्मान से भी नवाज़ा गया था।
5 नवंबर 2021 को गरिमा पाठक द्वारा रचित ये कविता देखें -
मैं जा रही हूँ फिर से आने के लिए
अब साथ मीत, गीत हैं गुनगुनाने के लिए
चाहतें बहुत हैं अभी बाक़ी
सपनें बहुत हैं अभी बाक़ी
पूरे करने हैं ख़्वाब बाक़ी
फिर से आऊँगी मैं
सारे सपनें साकार करने के लिए
अब साथ मीत, गीत हैं गुनगुनाने के लिए ।
गरिमा पाठक
जन्म - 23-07-1970 , डाल्टनगंज , पलामू
निधन -07-02-2022, रांची
बहुत सुंदर
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि
ReplyDeleteगरिमा जी अपने सृजन में और हमारी यादों में अमर रहेंगी ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लिखा है गरिमा जी के लिए l शत शत नमन
ReplyDeleteइस अल्पायु में जाना दुखद है। विनम्र श्रद्धांजलि। वह अपने साहित्य के माध्यम से अमर रहेंगी।
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