Friday, October 30, 2020

लघु कथा - तोता - मैना और वट्सप



लघु कथा -  तोता - मैना और व्हाट्सप्प 

            एक बार एक तोते को एक मैना से प्रेम हो गया।  तोता रसिक कवि था सो मैना के प्रेम में रोज़  नयी नयी प्रेम कवितायें  लिखता और मैना  के दिल को लुभाता।  मैना  के लिए प्रेम का आसमान नया नया था लेकिन ज़मीन जानी पहचानी थी। तोता ,मैना से मिलने के लिए बेक़रार था , आखिर एक दिन प्रेम गली में उसकी मुलाक़ात मैना से हो गयी। 


 हमे आप से  कुछ बात करनी है - तोते ने शर्माते हुए कहा। 


- हाँ , हाँ , कहिये ?


- आप बहुत सुन्दर हैं , मेरी कविताओं से भी सुन्दर। 


- जी , यह तो मैं जानती हूँ। 


-  हमे आप से और बात करनी हैं। 


- जी कहिये ?


- आप बहुत शोख़ हैं। 


- जी , शुक्रिया , पर यह भी मैं  जानती हूँ। 


- नहीं , नहीं , हमे आप से कुछ और बात कहनी है। 


- जी बताये 


- वो... वो बात हम यहाँ नहीं कह सकते, कही और चले ?


- कहाँ , चाँद के पार ?


- नहीं ,चाँद के पार नहीं  , वट्सप  पर चलते हैं । 




लेखक - इन्दुकांत  आंगिरस 




Tuesday, October 27, 2020

चिराग़ - ए - दैर , ग़ालिब और बनारस


 

मिर्ज़ा ग़ालिब ने अपनी  फ़ारसी मसनवी   चिराग़ - ए - दैर में  प्राचीन शहर बनारस के सांस्कृतिक सौंदर्य का बड़ी ख़ूबसूरती से उजागर किया है। अपनी कलकत्ता यात्रा के दौरान ग़ालिब ने कुछ वक़्त बनारस में गुज़ारा  और बनारस की फ़िज़ा से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने १०८ शे'रो की मस्नवी  चिराग़ - ए - दैर की रचना कर दी। बनारस की आत्मा  को ग़ालिब ने इस मसनवी  में कुछ इस तरह से ब्यान किया है -


कि हर कस काँ दरां गुलशन बमीरद

दिगर पैवन्द जिस्माने --- न     गीरद


अर्थात जो काशी में  देह  त्यागता है , वह जन्म - मरण के बन्धन से मुक्त हो जाता है। उसे दोबारा जिस्मानी शरीर नहीं मिलता। इसी भाव का एक और शे'र देखें -

चमन सरमाया -ए - उम्मीद गर्दद 

ब मुर्दन ज़िन्दा -ए जावेद    गर्दद


अर्थात बनारस का चमन उसकी उम्मीदों का सरमाया बन चुका है और इस शहर में व्यक्ति मर कर भी अमर हो  जाता है। बनारस की मस्त और फ़क़ीराना तबीयत को उन्होंने कुछ यूँ पेश  किया है -


सवादश पाए - तख़्ते- बुतपरस्ताँ

सरापा बेश ज़ियारतगाहे - मस्ताँ


गंगा के पानी में नहाती सुंदरियों से पानी के जिस्म में हलचल हो जाती है और ऐसा लगता है मानो पानी में मछलियां किलोल कर रही हैं।सीने में सैकड़ों दिल मछलियों की मानिंद तड़प उठते हैं।    इस अद्भुत भाव को ग़ालिब के इस शे'र में देखें -

फ़ताद : शोरिशे - दर - क़ालिबे - आब

ज़े  माही सद  दिलश   दर सीन: बेताब 


              ग़ालिब को अपने तुर्क होने का बहुत गर्व था लेकिन उन्हें हिन्दुस्तान की मिट्टी से भी बहुत प्रेम और लगाव था। हिन्दुस्तान के इस प्रेम के कारण ही उन्होंने बनारस को अपनी साँसों में महसूस किया और अदबी दुनिया को चिराग़ - ए - दैर के उपहार से नवाज़ा। हिंदुस्तान के प्रति उनके प्रेम को उनके इस मिसरे में देखें -

" हिन्द दर फ़स्ले - ख़िज़ा नीज़ बहारें - दारद " यानी हिन्दुस्तान में पतझड़ के मौसिम में भी वसंत रहता है " 


आपको शहर बनारस पर अनेक भाषाओं  में अनेक किताबें मिल जाएँगी लेकिन इसमें कोई दोराह नहीं कि बनारस पर लिखी किताबों में ग़ालिब द्वारा रचित फ़ारसी मसनवी  चिराग़ - ए - दैर एक विशिस्ट स्थान रखती है।  ग़ालिब को हिन्दू धर्म कि आस्थओं की भी जानकारी थी शायद इसीलिए उन्होंने इस मस्नवी में १०८ शेर पिरोए। हिन्दू धर्म में ईश्वर का जाप करने वाली  माला  में १०८ मनके होते हैं। 

Friday, October 23, 2020

लघु कथा - आश्चर्य



आश्चर्य 


धरती पर एक लम्बा वक़्त गुज़ार कर जब नारद मुनि वापिस ब्रह्मलोक  में लौटे तो प्रभु ने उनसे पूछा -


- कहो , नारद मुनि , इस बार आपकी धरती यात्रा कैसी रही ?


-  अति उत्तम ,प्रभु  , इस बार तो मुझे हास्य  कवियों से मिलने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ 

    और ऐसे ऐसे कवियों को सुना कि मन आश्चर्य से भर गया। 


- अच्छा , तो हमे भी अपने श्रेष्टतर  तीन आश्चर्यों  से अवगत कराये। 


- जी प्रभु 


पहला आश्चर्य - एक हास्य कवि पति द्वारा अपनी पत्नी की प्रशंसा में लिखा प्रेम गीत। 


दूसरा आश्चर्य  -हास्य  कवि पति के मुख से प्रेम गीत सुनकर पत्नी का लजा जाना।  


तीसरा आश्चर्य पति-पत्नी के इस प्रेम को देखकर शेष कवियों द्वारा उनकी प्रशंसा करना। 


अद्भुत,अद्भुत  निश्चय ही तुम्हारे तीनों आश्चर्य किसी आश्चर्य से कम नहीं- प्रभु ने मुस्कराते हुए नारद मुनि से कहा।


नारद मुनि , हरी ॐ ,हरी ॐ कहते हुए आगे बढ़ गए और सबकी  निगाहें ' हरी ॐ ' की ओर उठ गयीं । 

 



लेखक - इन्दुकांत  आंगिरस  

Friday, October 2, 2020

कीर्तिशेष तिलक राज सेठ "तलब "








हीरे बहुत हैं तू कोई    पत्थर तलाश कर 

बदलेगा जिससे तेरा मुक़द्दर तलाश कर 


पत्थर की तलाश करने वाले कीर्तिशेष तिलक राज सेठ "तलब " से मेरी पहली मुलाक़ात इंदिरा नगर , बैंगलोर में उनके घर पर ही हुई थी।  लगभग पाँच फुट का क़द ,गौर वर्ण , उन्नत ललाट पर सलीके से कढ़े हुए लम्बे बाल , कुरता -पायजामा और कुर्ते के जेब में चमचमाता क़लम। तलब साहिब ने अपनी मेहनत के पत्थर से हीरों को तराशा और अपना मुक़द्दर ख़ुद बनाया। तलब साहिब अपने घर के आँगन में ही हुस्न - ए -तलब की   महाना नशिस्तों  का आयोजन करते थे जिसक संचालन हमेशा जनाब मोहिउद्दीन ज़फ़र  करते थे।  माइक की देख-रेख श्री ओम जी करते थे जोकि ख़ुद तो शाइर नहीं थे लेकिन शाइरी का शौक़ रखते थे। इन नशिस्तों में अक्सर २५-३० शाइरों की हाज़री होती थी और यही पर मुझे बैंगलोर के कई नामवर शाइरों  से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।  तलब साहिब एक अच्छे शाइर तो थे ही , साथ में एक बेहतरीन चित्रकार भी थे। घर की बैठक में  उनकी कई ख़ूबसूरत पेंटिंग्स भी देखने  को मिली। आप बहुत ही धीमी आवाज़ में बात करते थे और कभी कभी तो ये गुमान होता था कि उन्होंने कुछ कहा तो है पर उनके लब खुले भी हैं कि नहीं। 


तलब साहिब ने बरसों तक फ़िल्म इंडस्ट्री में बतौर पब्लिसिटी डिज़ाइनर काम किया लेकिन बाद में ख़ुद को शाइरी और चित्रकारी से जोड़ लिया। उन्हें ज़िंदगी का एक लम्बा तजुर्बा हासिल था जिसकी झलक हमें उनके क़लाम में देखने को मिल सकती है।  उनकी ग़ज़लों में फ़लसफ़ा और रूहानियत भी मिलती है ,उनका यह शे'र देखे -


मौजूद है  वो    सामने  तेरे  तू   ग़ौर कर 

क़तरे  में भी कभी तू समन्दर तलाश कर 


क़तरे में समंदर को तलाश करने वाले इस शाइर को शाइरी का इस कदर शौक़ था कि हर महीने अपने घर पर नशिस्तों का आयोजन करते थे ,फ़ोन करके शाइरों को बुलाते थें और मुशायरे के बाद जमकर सबकी  ख़ातिरदारी भी करते थें। इन नशिस्तों में एक दिलचस्प बात यह भी थी कि मुशायरे के बाद संगीत की महफ़िल सजती थी जिसमे अक्सर मशहूर गायक श्री हरेकृष्ण पाहवा  उर्दू ग़ज़लें गा कर सुनाते थें।  उर्दू शाइरी के इतिहास  में जनाब तिलक राज सेठ "तलब " का नाम दर्ज़ होगा या नहीं यह तो मैं नहीं कह सकता लेकिन बैंगलोर की अदबी संस्थाओं का जब भी ज़िक्र होगा तो  तलब साहिब की अदबी बज़्म - हुस्न - ए -तलब हमेशा याद करी जायेगी। 


रेशम के    बिस्तरे पे न   तू करवटें बदल 

आ जाये जिसपे नींद वो पत्थर तलाश कर 


आख़िर तलब साहिब को वो पत्थर मिल  ही गया जिसकी उन्हें बरसों से तलाश थी और उसी पत्थर का सिरहाना लगा वो गहरी नींद में सो गए। 


प्रकाशित पुस्तक -  हुस्न - ए -तलब  ( उर्दू में ग़ज़ल संग्रह )

          " तस्सुवरात " नाम से तलब साहिब की बीस ग़ज़लों की एक CD  एल्बम भी मन्ज़रे आम पर आ चुकी है जिसमे   जनाब  मुनीर अहमद जामी साहिब द्वारा लिखे तब्सिरे को जनाब ज़फर मोहिउद्दीन और मोहतरमा शाइस्ता यूसुफ़  की आवाज़ में सुना जा सकता है। 

 CD  एल्बम






जन्म- २५ मई ' १९३२ ,अमृतसर 

निधन - १३ सितम्बर ' २०१३  , बैंगलोर 



NOTE : उनके सुपुत्र श्री राज सेठ को उनके सहयोग के लिए शुक्रिया ।