Saturday, March 5, 2022

पुस्तक परिचय - युद्ध के स्वर प्रेम की लय





 



                                अनादि काल से इस धरती पर युद्ध होते आये हैं , धरती पर है नहीं अपितु इस ब्रह्माण्ड में। असुरों और देवताओं का युद्ध , महाभारत का युद्ध , राम और रावण का युद्ध , प्रथम विश्व युद्ध , द्वितीय विश्व युद्ध  आदि। वैसे तो कसी भी युद्ध के मूल तीन ही कारण होते हैं , ज़र , जोरू और ज़मीन लेकिन धर्म की रक्षा के लिए भी युद्ध हुए हैं।  यह तो सर्वविदित है कि युद्ध विनाश करता है और मनुष्य की प्रगति को पीछे धकेल देता है लेकिन फिर भी युद्ध होते आये हैं और भविष्य में भी होते रहेंगे।  आजकल रूस और उक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है। 

  युद्ध का कारण कुछ भी हो , युद्ध कही भी हो , माल -असबाब के अलावा सबसे अधिक नुकसान इंसानों का होता हैं - निर्दोष जनता मारी जाती है और लाखों सैनिक शहीद हो जाते हैं। अक्सर युद्ध से पूर्व ऐसे नारे या कविताएँ सैनिकों को सुनाई जाती हैं जिनसे उनका आत्मबल बढ़ता है और वे अपनी जान की परवाह किये बिना युद्ध के मैदान में कूद पड़ते हैं। युद्ध और कविता का मेल सदा से रहा है , वीर रस  की कविताएँ सुनने वालों के मन में देश प्रेम की भावना को जाग्रत कर देती है। अनेक बार देखने में आया है कि बहुत से सैनिक भी कविताएँ लिखते हैं। 

रामप्रसाद बिस्मिल की ये पंक्तियाँ आज भी सुनने वालो का ख़ून  गरम कर देती हैं -

सर फ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है 

देखना है ज़ोर कितना  बाजु-ए-क़ातिल में हैं  


डॉ श्यामसिंह  शशि द्वारा सम्पादित पुस्तक  '  युद्ध के स्वर प्रेम की लय '  एक ऐसी ही दुर्लभ पुस्तक है जिसमे 38 भारतीय सैनिको ( थल सेना , वायु सेना , नौसेना ) द्वारा रची गयी युद्ध सम्बंधित कविताएँ शामिल हैं , साथ ही सम्पादक की भी चंद युद्ध  सम्बंधित कविताएँ   हैं। इन कविताओं में से अधिकांश कविताएँ ' सैनिक समाचार '    पत्रिका ( तत्कालीन  सम्पादक - डॉ श्यामसिंह  शशि ) में पूर्व प्रकाशित हो चुकी हैं। यह पुस्तक " साहित्य जगत के अमर पुत्र ' भूतपूर्व सैनिक ' स्वर्गीय रामानंद दोषी की स्मृति में ' प्रकाशित हुई है। बानगी के रूप में पुस्तक से कुछ उद्धरण प्रस्तुत हैं - 


अगन अंगार से खेलो 

अगम अंधियार से खेलो 

तुम्हे कुछ कर दिखाना है , जलन से ज्वार से खेलो 

समय के सारथी हो तुम 

अभय के सारथी हो तुम 

विजय के सारथी हो तुम ! 


( पृष्ठ # 12 ,कविता ' उठो तलवार से खेलो ' से , कवि - रामानंद दोषी )


साँस अंतिम कह रही आगे बढ़ो तुम 

लाश पर मेरी न क्षण भर भी ठहरना 

टूटती आवाज़ में फिर कह रहा  हूँ 

साथियों , अपने वतन से प्यार करना 

काश मेरी माँ यहाँ ये देख पाती 

घाव मैंने पीठ में खाया नहीं है। 


( पृष्ठ -20 ,कविता - 'वतन से प्यार'  से  ,  कवि केदारनाथ शर्मा शास्त्री - नायब सूबेदार )


सीमा पर धधक रही ज्वाला झर झर झरते हैं अंगार 

ओ प्रिय ऐसे में कैसे , मैं  डालूँ    गलबहियों का हार 


( पृष्ठ - 40 ,कविता ' प्रिय तब ही करना श्रृंगार ' से , कवि  - प्रकाश - भूतपूर्व सैनिक )




पुस्तक का नाम - युद्ध के स्वर प्रेम की लय  ( काव्य  संग्रह ) 

लेखक -  विभिन्न भारतीय सैनिक 

सम्पादक - डॉ श्यामसिंह  शशि

Copyright -   डॉ श्यामसिंह  शशि

Language - Hindi 

प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन   , देहली 

प्रकाशन वर्ष -  प्रथम   संस्करण , 1974

पृष्ठ - 84

मूल्य - INR 7/  ( सात  रुपया केवल )

Binding -  Hardbound

Size - 4.5" x 7 "

ISBN - Not Mentioned



प्रस्तुति - इन्दुकांत आंगिरस 








1 comment: