Thursday, March 10, 2022

कीर्तिशेष रोशनलाल गुप्ता ' भावुक ' और उनकी पहली किरण










कीर्तिशेष रोशनलाल गुप्ता ' भावुक ' से मेरी पहली मुलाक़ात बैंगलोर की प्रसिद्ध  कवि श्री ज्ञानचंद मर्मज्ञ की  साहित्यिक संस्था ' साहित्य साधक मंच ' में ही हुई थी।  रोशनलाल जी पेशे से व्यवसायी  थे लेकिन कविता प्रेमी थे और निरंतर काव्य सृजन में संलग्न थे। गोरा रंग , लगभग ५ फुट २ इंच का क़द , मृदु एवं अल्पभाषी , नज़र का चश्मा , पतलून - कमीज़ और हाथ में एक कॉपी ( नोटबुक ) रखते थे , कमीज़ की जेब में कोई भी मामूली क़लम।  काव्य गोष्ठियों में अक्सर बहुत छोटी कविताएँ सुनाते थे और जब दूसरे कवि अपनी रचनाएँ पढ़ते थे तो रोशनलाल जी बड़े मनोयोग से अपनी कॉपी में कुछ लिखते रहते थे।  कई बार मन हुआ कि उनसे पूछूँ कि आख़िर अपनी कॉपी में वो लिखते क्या हैं लेकिन कभी पूछ नहीं सका और यह बात एक रहस्य ही बनी रही।  कई बार तो कार्यक्रम उनकी रचनाओं से ही शुरू होता था।  कई बरस पहले उन्होंने अपने कोरमंगला , बैंगलोर के निवास पर एक निजी काव्यगोष्ठी का आयोजन किया था जिसमे मुझे शामिल होने का अवसर मिला था। 

कई वर्षों बाद लगभग तीन वर्ष पूर्व ( कोरोना से पूर्व ) एक साहित्यिक कार्यक्रम में उनसे मुलाक़ात हुई थी और उस दिन उन्होंने मुझे अपनी कार में बिठाकर ' Dairy Circle ' पर ड्राप किया था , बस यही थी उनसे आख़िरी मुलाक़ात। हाल ही में मित्रों से मालूम  हुआ कि आदरणीय रोशनलाल गुप्ता जी का पिछले दिनों बैंगलोर में ही निधन हो गया।  उनकी पहली काव्य पुस्तक ' पहली किरण ' मेरे पास है जिसका परिचय में आप सभी को देने जा रहा हूँ। इस पुस्तक को उन्होंने अपने माता -पिता को समर्पित किया है। डॉ पुण्यमचंद मानव और श्रीदेवी त्रिपाठी ने भूमिकाएँ लिखी हैं। आत्मकथ्य में कवि ने इस बात को स्वीकारा है कि मनोविज्ञान उनका प्रिय विषय रहा जिसके चलते उन्होंने मानव स्वभाव का शोधात्मक अध्ययन किया जिसका प्रभाव उनकी कविताओं में भी देखा  जा सकता है। सरस्वती वंदना के अलावा पुस्तक में छंदबद्ध 72 कविताएँ हैं जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती हैं। बानगी के तौर पर इसी पुस्तक से चंद उद्धरण प्रस्तुत हैं -


कष्टों की रही , लम्बी कतार 

दुखों का रहा , घना अम्बार।  

विरोधों से  जूझता  ही  रहा

नदारद रहा ,अपनों का प्यार।। 

 



अंग - प्रत्यंग के गुण गाए

उपमा विशेषणों से जोड़े। 

किर्या क्रम  में जुट  जाए

शरीर जब प्राणों को छोड़े।। 


उषा  की   पहली   किरण 

अँधेरे के सीने को चीर कर  

जग   में   उजाला     भरें 

स्फूर्ति   को   लगा दे पर 


बुढ़ापा   खोजे   एक सहारा 

अपनापन भी हो जाए खारा

जिनके लिए सब कुछ त्यागा 

वो ही , करने लगे  किनारा  



     साहित्य का एक तारा बुझ गया और पहली किरण भी छुप गयी लेकिन उनका साहित्य सदा हमारे साथ रहेगा। कवि / लेखक हमसे बिछड़ जाते  हैं लेकिन अपनी रचनाओं में रहते हैं ज़िंदा। मीर तक़ी मीर का शे'र ज़ेहन में आ रहा है-


मर्ग इक मांदगी  का वक़्फ़ा है 

यानी आगे   चलेंगें दम लेकर



 पुस्तक का नाम -  पहली किरण    ( काव्य    संग्रह )

लेखक -  रोशनलाल गुप्ता ' भावुक ' 

प्रकाशक - शब्दायन , बैंगलोर 

प्रकाशन वर्ष -



प्रथम संस्करण , 2011

कॉपीराइट - आशा गुप्ता / विवेक गुप्ता 

पृष्ठ - 118

मूल्य - ( 150/ INR  (एक सौ  पचास  रुपए केवल )

Binding -  Paperback 

Size - डिमाई 4.8 " x 7.5 "

ISBN - Not Mentioned


कीर्तिशेष रोशनलाल गुप्ता ' भावुक ' 

जन्म  -  26th December .1950 - बख्तावरपुर , दिल्ली  

निधन -  बैंगलोर , 2022



 प्रस्तुति - इन्दुकांत आंगिरस 





Saturday, March 5, 2022

पुस्तक परिचय - युद्ध के स्वर प्रेम की लय





 



                                अनादि काल से इस धरती पर युद्ध होते आये हैं , धरती पर है नहीं अपितु इस ब्रह्माण्ड में। असुरों और देवताओं का युद्ध , महाभारत का युद्ध , राम और रावण का युद्ध , प्रथम विश्व युद्ध , द्वितीय विश्व युद्ध  आदि। वैसे तो कसी भी युद्ध के मूल तीन ही कारण होते हैं , ज़र , जोरू और ज़मीन लेकिन धर्म की रक्षा के लिए भी युद्ध हुए हैं।  यह तो सर्वविदित है कि युद्ध विनाश करता है और मनुष्य की प्रगति को पीछे धकेल देता है लेकिन फिर भी युद्ध होते आये हैं और भविष्य में भी होते रहेंगे।  आजकल रूस और उक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है। 

  युद्ध का कारण कुछ भी हो , युद्ध कही भी हो , माल -असबाब के अलावा सबसे अधिक नुकसान इंसानों का होता हैं - निर्दोष जनता मारी जाती है और लाखों सैनिक शहीद हो जाते हैं। अक्सर युद्ध से पूर्व ऐसे नारे या कविताएँ सैनिकों को सुनाई जाती हैं जिनसे उनका आत्मबल बढ़ता है और वे अपनी जान की परवाह किये बिना युद्ध के मैदान में कूद पड़ते हैं। युद्ध और कविता का मेल सदा से रहा है , वीर रस  की कविताएँ सुनने वालों के मन में देश प्रेम की भावना को जाग्रत कर देती है। अनेक बार देखने में आया है कि बहुत से सैनिक भी कविताएँ लिखते हैं। 

रामप्रसाद बिस्मिल की ये पंक्तियाँ आज भी सुनने वालो का ख़ून  गरम कर देती हैं -

सर फ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है 

देखना है ज़ोर कितना  बाजु-ए-क़ातिल में हैं  


डॉ श्यामसिंह  शशि द्वारा सम्पादित पुस्तक  '  युद्ध के स्वर प्रेम की लय '  एक ऐसी ही दुर्लभ पुस्तक है जिसमे 38 भारतीय सैनिको ( थल सेना , वायु सेना , नौसेना ) द्वारा रची गयी युद्ध सम्बंधित कविताएँ शामिल हैं , साथ ही सम्पादक की भी चंद युद्ध  सम्बंधित कविताएँ   हैं। इन कविताओं में से अधिकांश कविताएँ ' सैनिक समाचार '    पत्रिका ( तत्कालीन  सम्पादक - डॉ श्यामसिंह  शशि ) में पूर्व प्रकाशित हो चुकी हैं। यह पुस्तक " साहित्य जगत के अमर पुत्र ' भूतपूर्व सैनिक ' स्वर्गीय रामानंद दोषी की स्मृति में ' प्रकाशित हुई है। बानगी के रूप में पुस्तक से कुछ उद्धरण प्रस्तुत हैं - 


अगन अंगार से खेलो 

अगम अंधियार से खेलो 

तुम्हे कुछ कर दिखाना है , जलन से ज्वार से खेलो 

समय के सारथी हो तुम 

अभय के सारथी हो तुम 

विजय के सारथी हो तुम ! 


( पृष्ठ # 12 ,कविता ' उठो तलवार से खेलो ' से , कवि - रामानंद दोषी )


साँस अंतिम कह रही आगे बढ़ो तुम 

लाश पर मेरी न क्षण भर भी ठहरना 

टूटती आवाज़ में फिर कह रहा  हूँ 

साथियों , अपने वतन से प्यार करना 

काश मेरी माँ यहाँ ये देख पाती 

घाव मैंने पीठ में खाया नहीं है। 


( पृष्ठ -20 ,कविता - 'वतन से प्यार'  से  ,  कवि केदारनाथ शर्मा शास्त्री - नायब सूबेदार )


सीमा पर धधक रही ज्वाला झर झर झरते हैं अंगार 

ओ प्रिय ऐसे में कैसे , मैं  डालूँ    गलबहियों का हार 


( पृष्ठ - 40 ,कविता ' प्रिय तब ही करना श्रृंगार ' से , कवि  - प्रकाश - भूतपूर्व सैनिक )




पुस्तक का नाम - युद्ध के स्वर प्रेम की लय  ( काव्य  संग्रह ) 

लेखक -  विभिन्न भारतीय सैनिक 

सम्पादक - डॉ श्यामसिंह  शशि

Copyright -   डॉ श्यामसिंह  शशि

Language - Hindi 

प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन   , देहली 

प्रकाशन वर्ष -  प्रथम   संस्करण , 1974

पृष्ठ - 84

मूल्य - INR 7/  ( सात  रुपया केवल )

Binding -  Hardbound

Size - 4.5" x 7 "

ISBN - Not Mentioned



प्रस्तुति - इन्दुकांत आंगिरस 








पुस्तक परिचय - Immortal LIEDER ( 800 years of German Poetry )

 






कविता क्या है ? विभिन्न साहित्यकारों ने कविता की अलग अलग परिभाषाएँ दी हैं लेकिन इसमें कोई दोराह नहीं कि सभी कलाओं में कविता का स्थान सर्वोच्च है। अनुवाद के ज़रिए हम  विश्व की अनेक भाषओं की कविता से परिचित होते हैं।आज जिस दुर्लभ पुस्तक का परिचय दे रहा हूँ उसका नाम ' Immortal LIEDER ' है।  इस पुस्तक में बाहरवीं शताब्दी से बीसवीं शताब्दी तक के जर्मन कवियों की कवितायेँ शामिल है जिनका अँगरेज़ी अनुवाद अमेरिकी कवि एवं उपन्यासकार  E.Louise Mally  ने किया है। जर्मनी के 800 साल  के कवियों की कविताओं के  इस संकलन में लगभग 50 प्रतिष्ठित कवि और लगभग उतने ही गुमनाम कवियों की कविताएँ शामिल हैं।  जर्मन कविताओं के अँगरेज़ी अनुवाद की यह दुर्लभ पुस्तक  पाठकों के लिए किसी कविता कुञ्ज से कम नहीं। 

सभी कविता प्रेमी इस अद्भुत अनुवाद का लुत्फ़ उठा सकते हैं विशेषरूप से जर्मन भाषा और साहित्य के विद्यार्थी।  बानगी के रूप में चंद पंक्तिया प्रस्तुत हैं -


Welcome, moon, oh silver one,

Still, sweet companion of my nights !

You would leave me ? Do not hasten , friend of contemplation 

See, she lingers .Only clouds spurt across her face .

( Page # 48 , From the poem ' The Early Graves ' by Friedrich Gottlieb Klopstock )


 My heart feels each echoing note 

Of days of joy or stress 

I walk between that joy , that pain 

In my loneliness.

( Page # 69 From the poem ' The Moon ' by Johann Wolfgang Goethe )


How poor, those who love and part ,

That we have learnt , we two ;

I shudder , the house is so still.

You wave your handkerchief still ,

I can scarcely see it for tears And yet I look  up the street .

( Page # 93 From the poem ' On the Departure of My Daughter ' by  Josef Von Eichendorff  )



पुस्तक का नाम  - Immortal LIEDER 


लेखक -  विभिन्न जर्मन कवि 

 अनुवादक -  E. LOUISE MALLY

Copyright -   Seven Seas Books 

Language - English

प्रकाशक - Seven Seas Publishers , Berlin 

प्रकाशन वर्ष - 1962

पृष्ठ - 166

मूल्य - Not mentioned in book 

Binding -  Paperback

Size -  4.5" x 7.5"

ISBN - Not Mentioned

Cover Design - Lothar Reher 



Translator : E. LOUISE MALLY


प्रस्तुति - इन्दुकांत आंगिरस 

Thursday, March 3, 2022

पुस्तक परिचय - साहित्य और समीक्षा






                 आजकल साहित्य लेखन प्रचुर मात्रा में हो रहा है और रोज़ नए नये - नये लेखक पैदा हो रहे हैं , विशेषरूप से कवियों की तो भरमार है। अक्सर सभी लेखक और कवि अपना परिचय साहित्कार के रूप में देते हैं लेकिन शायद ऐसे लेखक और कवि उँगलियों पर गिने जा सकते हैं जो साहित्य शास्त्र की समझ रखते हो। गुलाबराय द्वारा रचित पुस्तक साहित्य और समीक्षा एक ऐसी ही दुर्लभ पुस्तक है जो साहित्य के विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी है।  साहित्य के विद्यार्थियों से मेरा तात्पर्य सिर्फ वही विद्यार्थी नहीं है जो हिन्दी विषय में MA कर रहे हैं अपितु वे सभी लेखक और कवि जो रचनाएँ लिख रहे हैं , साहित्य के विद्यार्थी हैं , ये अलग बात है कि अधिकांश कवि अपने को साहित्य का विद्यार्थी नहीं अपितु साहित्यकार ही मानते  हैं। विशेषरूप से एक कवि के लिए साहित्य शास्त्र का ज्ञान होना अनिवार्य है।  इस पुस्तक में काव्य के तत्त्व, काव्य रस , काव्य के विभिन्न रूप , काव्य के गुण और रीतियों , काव्य के दोष , प्रमुख अलंकार , छंद आदि के बारे में संक्षेप में उदहारण सहित बतलाया गया है इसलिए यह दुर्लभ पुस्तक साहित्य के विद्यार्थियों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। 



पुस्तक का नाम - साहित्य और समीक्षा 

लेखक -  गुलाबराय 

Copyright -   गुलाबराय ( Not mentioned in book )

Language - Hindi 

प्रकाशक - आत्माराम एन्ड संस  , देहली 

प्रकाशन वर्ष -  द्वितीय  संस्करण , 1956

पृष्ठ -144

मूल्य - INR 20/  ( बीस रुपया केवल )

Binding -  Hardbound

Size -  4" x 6 "

ISBN - Not Mentioned





लेखक -  गुलाबराय 

जन्म -   17th January , 1888 

निधन -  13th April , 1963


NOTE :  लेखक के बारे में अधिक जानकारी के लिए उनका विकी पेज देखें। 


प्रस्तुति - इन्दुकांत आंगिरस