Saturday, February 19, 2022

पुस्तक परिचय - धर्म के नाम पर









         हज़ारों वर्षों से मनुष्य धर्म की हाथों कठपुतली बनता आया है। धर्म ने करोड़ों लोगों को प्रभावित  किया है , इसी के कारण बहुत से युद्ध हुए हैं । धर्म ने मानव जाति का नाश किया है या उद्धार किया है , इसके बारे में अनेक लेखकों ने अपने अपने मत दिए है। इसी विषय पर आचार्य श्री चतुरसेन शास्त्री जी द्वारा रचित पुस्तक ' धर्म के नाम पर ' एक दुर्लभ और विचारणीय पुस्तक है। पुस्तक के कवर पेज पर ही एक सीढ़ी बनी हुई है जिसमे लिखा है धर्म के नाम पर क्या क्या होता रहा है। शायद कवर पेज की तस्वीर में इन्हें पढ़ने में असुविधा हो इसलिए उस सीढ़ी पर अंकित विषयों को प्रस्तुत कर रहा हूँ :

बेवकूफ़ी , छल , धूर्तता , ठगी , झूठ ,अनाचार ,पाखण्ड ,पाप ,व्यभिचार , अपराध और हत्या। 


धर्म के नाम पर उपरोक्त सभी कुछ होता आया है और सिर्फ भारत ही नहीं अपितु विश्व के अनेक देशों में।  लेकिन अब प्रश्न यह उठता है कि क्या धर्म ने हमारे साहित्य को भी प्रभावित किया है और अगर किया है तो किस हद तक। साहित्य का काम मनुष्यता को बचाए रखने का होता है और  किस हद तक धर्म का काम भी यही होना  चाहिए लेकिन ऐसा होता नहीं है। ' धर्म के नाम पर '  पुस्तक में लेखक ने उपरोक्त विषयों पर विस्तार से चर्चा की है।  पिछले कुछ सालों में हमारे देश में भी धर्म के नाम पर बहुत कुछ अटपटा हुआ है। ऐसे में इस पुस्तक की महत्ता  और भी बढ़ जाती है ,  संभव  हो  तो इस दुर्लभ किताब को ज़रूर पढ़ें। 




पुस्तक का नाम - धर्म के नाम पर


लेखक -  आचार्य श्री चतुरसेन शास्त्री

Copyright -   ( Not mentioned in book )


Language - Hindi 


प्रकाशक - हिन्दी साहित्य मंडल , देहली 


प्रकाशन वर्ष -  तृतीय संस्करण , आठवीं आवृति   ,1949

पृष्ठ -152


मूल्य - INR 1/  ( एक रुपया केवल )


Binding -  Paperback


Size -  4" x 6 "


ISBN - Not Mentioned



लेखक -  आचार्य श्री चतुरसेन शास्त्री 

जन्म -   26th August , 1891 

निधन -  2nd February , 1960



NOTE : इस पुस्तक का प्रथम संस्करण सं 1934 में प्रकाशित हुआ था। लेखक के बारे में अधिक जानकारी के लिए उनका विकी पेज देखें। 



प्रस्तुति - इन्दुकांत आंगिरस 




Saturday, February 12, 2022

पुस्तक परिचय - रवींद्र कविता कानन ( Rabindranath Tagore - POET of RIVER )

 


                                       पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी ' निराला ' की प्रथम गद्य रचना 

                         

                                                  Rabindranath Tagore - POET of RIVER 




              नोबल साहित्यिक पुरस्कार से सम्मानित विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर किसी परिचय के मोहताज नहीं।  " गीतांजलि " काव्य संग्रह के लिए इन्हें नोबल पुरस्कार से सं 1913 में नवाज़ा गया जिसका अँगरेज़ी अनुवाद  स्वयं कवि ने किया था।  बाद में इस पुस्तक का अनुवाद विश्व की अनेक भाषाओं में हुआ।पश्चिमी संसार रवीन्द्रनाथ टैगोर को नदी का कवि ( The Poet of River )  मानता है और यह सत्य भी है।   जैसा कि सर्वविदित है कि ' गीतांजलि ' बांग्ला भाषा में लिखी गयी थी , न सिर्फ़ गीतांजलि अपितु रवीन्द्रनाथ टैगोर का अधिकांश साहित्य बांग्ला भाषा में ही रचित हुआ। रवीन्द्रनाथ को उस युग में हिन्दी के पाठकों को समझाने का प्रथम प्रयास   सूर्यकान्त त्रिपाठी ' निराला ' द्वारा  ' रविंद्र  कविता कानन ' पुस्तक को रच कर किया गया।  इस पुस्तक कि महत्ता इसलिए भी अधिक हो जाती है क्योंकि निराला जी की  यह प्रथम गद्य रचना है। इस पुस्तक में  विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर  की संक्षिप्त जीवनी भी उपलब्ध है और परिशिष्ट में क्रमानुसार रवींद्र ग्रन्थ - सूची भी दी गयी है जोकि  महादेव साहा द्वारा बनाई गयी है और पुस्तक के प्रथम संस्करण में उपलब्ध नहीं थी। इस ग्रन्थ - सूची में  सं 1878 में कवि की कविताओं की पुस्तक - कवि काहिनी से लेकर 1937 में प्रकाशित अंतिम पुस्तक -खाप छाड़ा से ( हास्य रस की कविताएँ एवं कहानियाँ ) का ब्यौरा है। । ' निराला  ' जी ने इस पुस्तक में  रवीन्द्रनाथ टैगोर  के बांग्ला भाषा के पद्यों का हिन्दी सार भी प्रस्तुत किया है। बानगी के तौर पर मूल बांग्ला का एक पद्य और उसका सार देखें -


" आजि ए प्रभाते      सहसा  केरने

  पथहारा   रवि - कर 

आलय न पेय   पड़ेछे आसिये

आमार प्राणेर  पर 

बहु दिन परे   एकटी  किरण 

गुहाये दियेछे   देखा  

पड़ेछे आमार आंधार  सलिले

एकटी  कनक -रेखा। "


हिन्दी सार - ( आज इस प्रभात के समय , सूर्य की एक किरण एकाएक अपनी राह क्यों भूल गयी , यह मेरी समझ में नहीं आता।  वह कही  ठहरने  की जगह न पा, मेरे प्राणों पर आकर गिर रही हैं।  मेरे हृदय की कंदरा में बहुत दिनों के बाद किरण दिखायी दे रही है , हे - मेरी अन्धकार सलिल राशिपर सोने की एक रेखा खिंची हुई है।  )

( पृष्ठ - ३० -३१ )







पुस्तक का नाम - रवींद्र  कविता कानन 

                           

लेखक -  सूर्यकान्त त्रिपाठी ' निराला ' 

Copyright -   ( Not mentioned in book )

Language - Hindi 

प्रकाशक - हिन्दी प्रचारक पुस्तकालय , बनारस 

प्रकाशन वर्ष - संशोधित तथा परिवर्धित जन - संस्करण  ,1954

पृष्ठ - 176

मूल्य - 15.3 Anna  ( साढ़े पंद्रह आने  )

Binding -  Paperback

Size -  4" x 6 "

ISBN - Not Mentioned



रवीन्द्रनाथ टैगोर


जन्म -  7th May  , 1861 . Kolkota 

निधन -  7th August  ,1941 . Kolkota


सूर्यकांत त्रिपाठी  ' निराला ' 


जन्म - 21st February , 1896 . Midnapore

निधन -  15th October , 1961 . Pryagraj 



प्रस्तुति - इन्दुकांत आंगिरस 


NOTE : रवीन्द्रनाथ टैगोर एवं सूर्यकांत त्रिपाठी  ' निराला ' के बारे में   अधिक जानकारी के लिए उनका विकी पेज देखें। 


Monday, February 7, 2022

कीर्तिशेष गरिमा पाठक - संस्थापक ट्रस्टी - कलश कारवाँ फाउंडेशन

 



                                                                     गरिमा पाठक

                                                         ( 23-7-1970  ---- 07-02-2022 )




                     भूल  जाना मुझे धीरे धीरे 

                     सब कुछ बदल जाऐगा धीरे धीरे 


                    उगते सूरज को सभी नमन करेंगे ही

                    मैं तो  ढलती रात  हूँ

                    सुषुप्त मद्धम  साँसें  भी  नहीं हैं  मेरी

                    भूल जाना सब मुझे ....


- गरिमा पाठक


गरिमा पाठक आप सब से उन्हें  भूल जाने अनुरोध कर रही हैं , पर क्या इतना आसान होता है किसी को भुलाना ?


               हमारे समाज में अक्सर ऐसा होता है कि जब भी कोई विशिष्ट साहित्यकार / कलाकार  की आत्मा  इस संसार से  विदा लेती है तो अख़बारों और मीडिया में उनके महाप्रस्थान और उनके काम की जानकारी विस्तार से दी जाती है लेकिन  बहुत से गुमनाम साधारण साहित्यकार , कवि और कलाकार अक्सर गुमनामी में खो जाते हैं जिनकी जानकारी हमें न तो अख़बारों में  मिलती है और न ही मीडिया में।  ऐसी ही एक साहित्यकार गरिमा पाठक का कल ( 07-02-2022 ) को गोलोक गमन हो गया। 

  गरिमा जी मेरी पहली मुलाक़ात सितम्बर 2021 में बेंगलुरु में राही राज के निवास स्थान पर हुई। राही राज और गरिमा पाठक के सम्पादन  में प्रकाशित साझा कविता संग्रह - ' उगता सूरज ' का विमोचन 5 सितम्बर' 2021 को बैंगलोर में हुआ और इसी दिन ' कलश कारवाँ फाउंडेशन 'की स्थापना की घोषणा हुई। गरिमा जी ,कलश कारवाँ फाउंडेशन की संस्थापक ट्रस्टी थी।  गरिमा जी अत्यंत सहज , सरल , मिलनसार  और मृदुभाषी थी। 


इन्होने कविता , गीत , मुक्त छंद , लघुकथा आदि विधाओं में अपनी  रचनाओं के ज़रिये  समाज में व्याप्त कुरीतियों और विद्रूपताओं को बख़ूबी उजागर किया है, विशेषरूप से इनकी देश प्रेम की कविताएँ सराहनीय हैं। उनका सपना था कि कलश कारवाँ फाउंडेशन के तहत , भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के स्वतंत्रता सैनानी एवं शहीदों की  याद में सेलुलर जेल , अंडमान निकोबार में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया जाये।  उनके जीवन में तो उनका सपना पूर्ण नहीं हो सका लेकिन आशा करता हूँ कि ' कलश कारवाँ फाउंडेशन ' उनके इस सपने को ज़रूर पूरा करेगी। 


साहित्य के प्रति उनका अतुल्य समर्पण कभी भुलाया नहीं जा सकता।  वह अपने साहित्यिक मित्रों को भी उत्साहित करती रहती थी।  आकाशवाणी से काव्य पाठ व अनेक साहित्यिक पत्र - पत्रिकाओं में उनकी रचनाएँ प्रकाशित हुई। 'साझा संकलन ' सप्त ऋषि ' एवं 'अभुदय काव्यमाला' में भी रचनाएँ प्रकाशित।  ई - बुक के रूप में 'अमृत सुधा ' एवं ' रिश्ते के अनुभव '। उनके एकल काव्य  संग्रह ' अनुभव सुधा ' का साहित्य जगत में भरपूर स्वागत हुआ। उनके और राही राज के सम्पादन में प्रकाशित साझा काव्य संग्रह ' उगता सूरज ' भी साहित्य जगत में काफ़ी चर्चित रहा। कविता के अलावा इन्हें चित्रकारी और हस्त - रेखाओं को पढ़ने का भी शौक़ था। सन 2000 से 2012 तक इन्होने चित्रकला शिक्षण संस्थान , बैतालिक रांची में चित्रकला शिक्षक के रूप में कार्य किया लेकिन कविता का दामन कभी नहीं छोड़ा। 26 दिसंबर 2022 को  बैंगलोर  में , अखिल भारतीय संस्कृति समन्वय समिति द्वारा आयोजित " कर्नाटक साहित्य उत्सव ' के दौरान गरिमा पाठक को पंडित सुरेश नीरव के कर कमलों से ' संस्कृति समन्वय सम्मान ' से सम्मानित किया गया। हाल ही में उन्हें अवध भारती संस्थान, लखनऊ द्वारा  ' तुलसी अवधी सम्मान  से भी नवाज़ा गया था। 

5 नवंबर 2021 को गरिमा पाठक द्वारा रचित ये कविता देखें -


मैं जा रही हूँ फिर से आने के लिए 

अब साथ मीत, गीत हैं गुनगुनाने के लिए 


चाहतें बहुत हैं अभी बाक़ी 

सपनें बहुत हैं अभी बाक़ी 

पूरे करने हैं ख़्वाब बाक़ी 


फिर से आऊँगी मैं 

सारे सपनें साकार करने के लिए 

अब साथ मीत, गीत हैं गुनगुनाने के लिए । 





गरिमा पाठक

जन्म - 23-07-1970 , डाल्टनगंज , पलामू 

निधन -07-02-2022, रांची 



NOTE : राही राज और प्रीति राही को उनके सहयोग के लिए शुक्रिया।