पुस्तक समीक्षा
'दीवान ए आरज़ू '
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हर शाइर या शाइरा की ख़्वाहिश होती है कि उसका दीवान उसके जीवन काल में ही आ जाये। उसके कई ग़ज़ल संग्रह तो आ सकते हैं लेकिन दीवान प्रकाशित नहीं हो पाता। इसके लिए एकाग्रता, दक्षता एवं दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है। छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश निवासी अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू' में दृढ़ इच्छा शक्ति और लगनशीलता होने के कारण ही उनके तीन ग़ज़ल संग्रह 'रोशनी के हमसफर, अनवर से गुफ़्तगू , और तुम,' प्रकाशित होने के बाद 'दीवान ए आरज़ू' दो अलग भाषाओं हिन्दी और उर्दू में एक साथ प्रकाशित हो सका।
जैसा कि अधिकांश विद्वान शाइरों को पता है कि दीवान उसे कहते हैं जिस ग़ज़ल संग्रह में हरूफ़ ए तहज्जी (उर्दू वर्णमाला) के हिसाब से रदीफ़ हों, यानी जिस ग़ज़ल संग्रह में उर्दू वर्णमाला 'अलिफ़' से लेकर 'ये' तक सभी अक्षर पर खत्म होने वाले शब्द की रदीफ़ वाली ग़ज़लें होती हैं उन्हें ही दीवान कह सकते हैं अन्यथा वे शे'री मजमूए (ग़ज़ल संग्रह) दीवान कहने की हकदार नहीं।
अंजुमन मंसूरी जी संस्कृत के साथ स्नातक एवं स्नातकोत्तर हिंदी साहित्य और उर्दू साहित्य से होने के कारण दोनों भाषाओं में उनकी अच्छी पकड़ है। यही कारण है कि आपकी ग़ज़लों में हिन्दी और उर्दू के शब्द सहज रूप से दिखाई देते हैं । आप छिन्दवाड़ा में शासकीय सी एम् राइज उच्च माध्यमिक विद्यालय में व्याख्याता हिन्दी साहित्य के पद पर कार्यरत हैं। तमाम व्यस्तताओं एवं कठिनाइयों के बावजूद आपका सतत लेखन जारी है। शायरी के प्रति समर्पण के कारण ही आपको पाथेय सृजन श्री 2017, काव्य भूषण सम्मान 2018 विश्व हिंदी सस्थान
कनाडा की तरफ़ से , दी ग्लोबल बुक ऑफ लिटरेचर अवार्ड 2019 और सबसे चर्चित पुरस्कार विश्व की सर्वाधिक लोकप्रिय 111 महिला साहित्यकारों में शीर्ष प्रथम स्थान प्राप्त शाइरा हैं। उनकी ग़ज़लें निराशा से उबारने हौसला से आगे बढ़ने की सलाह देती हैं। इस बात की पुष्टि में उनकी पहली ग़ज़ल के एक दो शेर देखें-
दो क़दम जो बढ़ा नहीं सकता।
अपनी मंज़िल वो पा नहीं सकता।।
जूझना जिसकी ज़िद में शामिल हो,
तो कभी मात खा नहीं सकता ।।
शाइरा अंजुम यह देखकर बहुत दुःखी हैं कि आधुनिकता की दौड़ में लोगों की जिंदगी से खेत , खलिहान, डगर, कुएं,गाय, बकरी आदि गाइब हो गये हैं। इसी संदर्भ में एक शे'र देखें -
शान कुत्तों को पालने में हुई ,
गाय बकरी से जानवर ग़ाइब।
जिनसे तहज़ीब आब पाती थी,
वो कुएं बावड़ी वो सर ग़ाइब।
आजकल के माहौल पर एक शे'र मुलाहिजा फरमाएं -
चिराग़े - इल्म जो रोशन किये हैं हमने,उन्हें,
बुझा रही हैं जहालत की आंधियां गुस्ताख़।
पुरुष प्रधान देश में प्राय: महिलाओं की आवाज अनसुनी कर दी जाती है यह बात बड़े सलीके से एक शे'र के द्वारा पाठक तक पहुंचाने का सफल प्रयास किया गया है। शे'र देखें -
अपनी ही बात कहता रहा है मचा के शोर,
सागर ने कब सुनी है किसी भी नदी की बात।
चन्द लोगों की ख़्वाहिशों की तामीर करने वाले किस प्रकार हासिये पर रख दिये जाते हैं इस शे'र में बखूबी देखा जा सकता है-
करीने से ज़ेबाई(सजावट) हमने की जिसकी ,
है उस बज़्म में हम पे शिरकत में बंदिश।
ईमानदारी अच्छी चीज है लेकिन आज की दुनिया में कठोर सच्चाई दिखाना स्वयं के लिएन एक जोखिम भरी मूर्खता है।
आईना बन के घूमोगे तो टूट जाओगे,
शीशा दिखाना एक हिमाकत है आजकल। 'दीवान ए आरज़ू' में कुछ शे'र ऐसे हैं जो भविष्य में मुहावरे बन सकते हैं। सम्पूर्ण दीवान पठनीय है। प्रत्येक ग़ज़ल का हर एक शे'र पाठक पर अपना प्रभाव छोड़ने में समर्थ है।
पुस्तक का नाम - दीवान ए आरज़ू
शाइरा - अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'
प्रकाशक- अल्फ़ाज़ पब्लिकेशन नागपुर
मूल्य - ₹ 300/- मात्र पेपर बैक
समीक्षक -राम अवध विश्वकर्मा ग्वालियर
मो. 9479328400
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