Sunday, September 19, 2021

गीत , संगीत और कुत्तें


 मेरे एक संगीत प्रेमी मित्र ने मुझे एक बार एक प्रसिद्ध संगीत की पुस्तक से एक ऐसे संगीतकार का संस्मरण सुनाया जिनका कुत्ता भी गवैया था। यह कोई क़िस्सा नहीं बल्कि हक़ीक़त है  कि एक संगीत समारोह में उस संगीतकार के  गायन से पूर्व उनके कुत्ते ने लगभग एक मिनट का गायन किया और वह भी सुर में क्योकि वह संगीतकार की लम्बी रियाज़ को कान लगा कर ध्यान से सुनता था।  कुछ लोगो का यह भी मानना है कि संगीत सुनकर कुत्तें शांत हो जाते हैं। मैंने अब तक इसके बारे में सुना ही था लेकिन 18 सितम्बर 2021 को फ़ेसबुक पर ' गीत गोपाल ' मंच पर नवगीतकार डॉ सुभाष वसिष्ठ और सीमा अग्रवाल जी के गीत वाचन के दौरान इस सच को अपनी आँखों से देखा। ।  मैं इस कार्यक्रम को लाइव तो नहीं सुन सका  लेकिन बाद में रिकॉर्डिंग सुनी और सीमा अग्रवाल जी के पालतू  कुत्ते की प्रतिक्रिया पर सुखद आश्चार्य  से भर गया। जैसे ही कार्यक्रम शुरू हुआ , सीमा जी का पालतू कुत्ता उनकी बग़ल में आकर बैठ गया और उनके गीत शुरू होने पर तो आराम से पसर गया। जब डॉ सुभाष वसिष्ठ ने अपना गीत शुरू किया तो कुत्ते ने एक बार करवट बदली और फिर प्रेम से गीत सुनने लगा। पूरे १ घंटे के कार्यक्रम में सीमा जी के इस पालतू कुत्ते ने संगीत और गीत को अपनी आत्मा में उतारा और एक पल का भी व्यवधान नहीं किया। 


सीमा अग्रवाल और डॉ सुभाष  वसिष्ठ दोनों ने ही अद्भुत गीत सुनाये , सुन कर आत्मा प्रसन्न हो गयी।  दोनों ही सौभाग्यशाली हैं कि उनको इतना ज़हीन श्रोता भी मिला। कोई आश्चर्य नहीं अगर उस कुत्ते को गीत पढ़ने के लिए आमंत्रित किया जाता तो शायद वह कुछ सुना देता। 


कुत्तों के बारे में पतरस बुखारी का एक बहुत ही दिलचस्प लेख है , जिसमे कुत्तों की पूरी कुंडली खोल कर दिखाई गयी है लेकिन उस लेख में भी कुत्तों और संगीत के सम्बन्ध के बारे में कुछ नहीं लिखा है। अगर आप भी गीत -संगीत से जुड़े है और आपके पास कोई पालतू कुत्ता है तो उसे अपना शागिर्द बनाना न भूलें। 



- इन्दुकांत आंगिरस 



Friday, September 17, 2021

पुस्तक परिचय - महाप्राण निराला







पिछले दिनों पिता जी की पुरानी पुस्तकों में  गंगाप्रसाद पाण्डेय द्वारा  रचित दुर्लभ पुस्तक - ' महाप्राण निराला '  की दुर्लभ प्रति  मिली तो मन हुआ कि आप सभी से साझा कर लूँ।  वैसे तो इस दुर्लभ पुस्तक का नवीन संस्करण ' रज़ा फाउंडेशन ' और राजकमल प्रकाशन द्वारा उपलब्ध कराया जा चुका है लेकिन इसका प्रथम संस्करण जिसकी सिर्फ़ १००० प्रतिया छपी थी ,  दुर्लभ है। इसकी भूमिका  महादेवी वर्मा ने -  ' जो रेखाएँ न कह सकेंगी ' शीर्षक  से लिखी  थी।  उनके द्वारा रेखांकित निराला का चित्र भी भूमिका के साथ ही छपा  है ।  इस पुस्तक ने यह बात निर्धारित कर दी थी कि किसी भी साहित्यकार के साहित्य का सही मूल्यांकन करने के लिए उस साहित्यकार के जीवन का अध्ययन भी ज़रूरी है।

निराला के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के अध्ययन के लिए यह पुस्तक अनिवार्य है। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जितने बड़े कवि थे उससे भी बड़े इंसान थे। एक भिखारी के बच्चों को देख कर उन्होंने लिखा -


ठहरो अहो मेरे हृदय में है अमृत ; मैं सींच दूँगा

अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम 

तुम्हारे दुःख मैं अपने हृदय में खींच लूँगा। 


निराला की निम्न कालजयी पंक्तियाँ देखें -


मुदें पलक , केवल देखें उर में -

सुनें सब कथा परिमल सुर में ,

जो चाहें , कहें वे कहें। 

जैसे हम हैं वैसे ही रहें !



 पुस्तक का नाम - महाप्राण निराला

लेखक -  गंगाप्रसाद पाण्डेय

प्रकाशक - साहित्यकार संसद , प्रयाग 


प्रकाशन वर्ष - प्रथम संस्करण ,1949 , संवत -२००६ 


कॉपीराइट - Not mentioned 

पृष्ठ - 384

मूल्य -10/ INR  ( दस   रुपए केवल )


Binding - Hardbound

Size - डिमाई 4.8 " x 7.5 "


ISBN - Not mentioned 





प्रस्तुति - इन्दुकांत आंगिरस