Saturday, April 30, 2022

कीर्तिशेष डॉ किशोर काबरा - तन के तट पर


                                                                   डॉ किशोर काबरा


                गुजरात के प्रख्यात कवि  कीर्तिशेष डॉ किशोर काबरा हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि है। मैंने कई बरस पहले पहली बार उनका नाम अपने मित्र डॉ वेदप्रकाश के मुँह से सुना था।  उन्होंने उनका ज़िक्र करते हुए कहा  था - ' किशोर काबरा जी हिन्दी छंद शास्त्र के विद्वान है , अगर वो दिल्ली में रहे होते तो उनका नाम बहुत ऊपर पहुँच जाता '।  दिल्ली में न रहते हुए भी  कीर्तिशेष डॉ किशोर काबरा एक बड़े कवि एवं साहित्यकार के रूप में स्थापित हो चुके थे।  देश - विदेश में उनके अनेक शिष्य हैं जो उनके साहित्यिक सफ़र को आगे बढ़ाते रहेंगे। कुछ ऐसा संयोग हुआ कि बैंगलोर की एक संस्था ' श्री जय भारती हिन्दी विद्यालय ' ने 2017 में जैन समय , बैंगलोर के संयुक्त तत्त्वाधान में एक विशेष साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन किया जिसमे डॉ किशोर काबरा को  मुख्य अतिथि के रूप में बैंगलोर आमंत्रित किया गया।  उन दिनों डॉ किशोर काबरा ,अजमेर के एक आर्य समाज  मंदिर में रहते थे लेकिन क्योंकि आर्यसमाज कविता और कवियों का प्रशंसक नहीं , इसलिए डॉ किशोर काबरा का कवि मन वहाँ एक क़ैदी की तरह रहता था।  बाद में उनके कुछ शिष्यों ने उनके रहने की व्यवस्था अहमदाबाद में कर दी थी, जहाँ उन्होंने अपनी अंतिम साँसें ली। 

 बैंगलोर में आयोजित इस भव्य साहित्यिक कार्यक्रम के लिए उन्हें एक हफ़्ते तक  बैंगलोर में रहना पड़ा और यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे अपने बैंगलोर के निवास स्थान पर उनकी सेवा करने का अवसर मिला।  इस एक हफ़्ते के दौरान उनसे  साहित्यिक  बातचीत के अलावा अंतरंग बाते भी हुई।  उनका व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों ही सभी को प्रभावित करते थे। अत्यंत सरल , सहज , मृदुभाषी ,अनुभव से परिपूर्ण , जीवन की रिक्तता का हँसते हुए गरल करना और कवि-सम्मेलनों   में डूब कर कविता पाठ करना , विशेषरूप से  गीत और ग़ज़ल। जिन्होंने उनका कविता पाठ सुना हैं वे वास्तव में  धन्य हैं। 

डॉ किशोर काबरा  ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाते थे और नियमित रूप से प्राणायाम करते थे। मेरे साथ ही नाश्ता और भोजन करते  और अपनी थाली में अन्न का एक कण भी नहीं छोड़ते  , उनका मानना था कि थाली में  जूठन छोड़ना अन्न का अपमान करना है।  मेरे बहुत मना करने पर भी  सदैव अपनी थाली ख़ुद धोते थे। मैं स्वयं को भाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे  एक हफ़्ते तक उनकी सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ और बहुत कुछ उनसे सीखने को भी मिला। 


6th Apr 2017 @ जिनेश्वर सभागार , बैंगलोर में एक भव्य कवि सम्मलेन का आयोजन हुआ। 

 प्रसिद्ध कवि डॉ किशोर काबरा की अध्यक्षता में संपन्न हुए इस कवि - सम्मेलन में  शहर के जाने माने कवि सर्वश्री तैयब अज़ीज़ी , गरिमा सक्सेना , टी. रवीन्द्रन , डॉ सुनील पंवार ,अरसल बनारसी , गुफ़रान अमजद , असजद बनारसी , इन्दुकांत आंगिरस ,सुनीता सैनी , विजेंदर सैनी , प्रेम तन्मय , शिप्रा चतुर्वेदी , सुधा दीक्षित , ज्ञानचंद मर्मज्ञ , उर्मिला, अशोक नागोरी , बसंत कुमार आदि ने कविता पाठ किया।

         तस्वीर में बाए से - डॉ टी रवीन्द्रन , इन्दुकांत आंगिरस , डॉ किशोर काबरा और अशोक नागोरी । 


उस दिन डॉ किशोर काबरा ने   चंद ग़ज़ल और गीत सुनाए जिनमे से एक गीत यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ -


तन के तट पर


तन के तट पर मिले हम कई बार, पर -

द्वार मन का अभी तक खुला ही नहीं।

डूबकर गल गए हैं हिमालय, मगर -

जल के सीने पे इक बुलबुला ही नहीं।



ज़िंदगी  की बिछी सर्प-सी धार पर

अश्रु के साथ ही क़हक़हे बह गए।

ओंठ ऐसे सिये शर्म की डोर से,

बोल दो थे, मगर अनकहे रह गए।

सैर करके चमन की मिला क्या हमें?

रंग कलियों का अब तक घुला ही नहीं।



चंदनी छन्द बो कर निरे काग़ज़ी 

किस को कविता की ख़ुश्बू मिली आज तक?

इस दुनिया की रंगीन गलियों तले

बेवफ़ाई की बदबू मिली आज तक।

लाख तारों के बदले भरी उम्र में

मेरा मन का महाजन तुला ही नहीं।



मर्मरी जिस्म को गर्म साँसें  मिली,

पर धड़कता हुआ दिल कहाँ  खो गया?

चाँद -सा चेहरा झिलमिलाया, मगर-

गाल का ख़ुशनुमा तिल कहाँ  खो गया?

आँख की राह सावन बहे उम्र भर,

दाग़  चुनरी का अब तक धुला ही नहीं।



इस कार्यक्रम के बाद डॉ किशोर काबरा वापिस अजमेर लौट गए थे। फ़ोन पर यदा - कदा उनसे कानाबाती  होती थी ,सदैव मुझे प्रोत्साहित करते रहते। कीर्तिशेष डॉ किशोर काबरा  का गोलोक गमन हो गया लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी हमारे बीच ज़िंदा हैं और उनकी यादें भी .. यह अफ़सोस की बात है कि उनकी मृत्यु का समाचार बहुत कम पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ और गूगल पर उनका विकी पेज भी नहीं , शायद हिन्दी के अधिकतर कवि - लेखकों को ऐसी ही गति प्राप्त होगी।  जिस देश में कवि और लेखकों का सम्मान नहीं वो देश कितना भी महान हो लेकिन आज भी भारतीय संस्कृति के सबसे नीचे वाले पायदान पर खड़ा है। 


डॉ किशोर काबरा का रचना संसार बहुत विशाल है। कविता , गीत , ग़ज़ल के अलावा अनेक खंड काव्यों की रचना। उनकी बहुत सी  रचनाएँ कई विद्यालयों एवं  विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में पढाई जाती रहीं हैं । भारतीय संस्कृति पर आधारित उनके तीन महाकाव्य - उत्तर रामायण , उत्तर महाभारत और उत्तर भागवत हिन्दी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं लेकिन भारतीय संस्कृति के इस संवाहक को हम , हमारा समाज और हमारा देश अब तक क्या दे पाया हैं ?

कहाँ हैं भारतीय संस्कृति का  ढोल पीटने वाले .. कहाँ हैं ..कहाँ हैं  ..कहाँ हैं   ???



कीर्तिशेष डॉ किशोर काबरा

जन्म  - 26th  December  , 1934 , Mandos (M.P.)

निधन - 25th March  , 2022 , Ahemdabaad , Gujrat